बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

पन्ना नम्बर -1 तारीख -दर्ज नहीं

मैं उससे प्यार करता हूँ
यह सवाल मैं रोज़ खुद से पूछता हूँ.शायद इससे मिलता जुलता प्रश्न वह ही पूछती हो.लडकियाँ बहुत जल्द कुछ भी पूछ बैठती हैं .लेकिन उन्हें कुछ भी भुलाने में पूरी उम्र थोड़ी पड़ जाती है.
प्रेम उनकी देह में प्रकट होता है .लेकिन वहां ठहरता नहीं. शरीर से पार चला जाता है.ठीक वैसे जब रंग के जरिये पेंटिंग बनती है तो बनने के बाद  कैनवस से बाहर निकल जाती है. कविताएँ शब्दों के घोंसले में अधिक दिन नहीं टिकती.आसमान की या ब्रह्मांड की थाह पाने निकल जाती हैं.
हाँ ,मैं उससे प्यार करता हूँ .
मेरे पास उसे प्यार करने की कोई खुदगर्ज वजह नहीं है.
यही वह पुख्ता आधार है जहाँ हम अपने अपने मौन में खूब बतियाते हैं.
प्यार के गणतन्त्र में मेरा छोटा सा राज्य है जिसके क्षेत्रफल का पता नहीं.